देखो अब तक,
व्याप्त है विष;
अहंकार का,
वास है विश्व;
प्रशांत विचलित,
उद्दंड मंडित यहाँ..
नीलकंठ!!
क्या एक घूँट के?
गंगाधर !!
क्या एक बार के?
बोलो-
कहाँ हो शिव?
~समर~
समर भीड़ में उलझा हुआ एक चेहरा है |
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