न हो….
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अनोखी बारात
प्रतीक की शिवरात्रि पर अनोखी कविता…
क्या चुनोगे तुम?
इस पार या उस पार….
हो सके तो लौट आना…
यतिन “शेफ़्ता ” की कविता…
यह ध्यान रखना…
फीनिक्स हो तुम,..
शून्य
अगर फैलने की ठान ले……
ओ मेरे महान सपनों..
सपनों से सीखा मैंने- अंतर है स्वतंत्र होने में
और मुक्त होने में।
हम थिएटर क्यों करते हैं?
विकास गर्ग बताते हैं क्यों रंगमंच एक निरंतर यात्रा है…
अनुवाद आभार : शताब्दी मन्ना |
समर की पहली कविता
चक्रव्ह्यु शत्रु नहीं, योद्धा की पहचान है|
चक्रव्ह्यु की गहनता ही, अभिमन्यु का मान है|
अभिनेता की मृत्यु पर….
अभिनेता मरते नहीं हैं | बस एक मंच से दूसरे मंच चले जाते हैं ….