कुछ समय पहले मुझे पहली बार ऋषिकेश में एक सत्संग में शामिल होने का अवसर मिला| सत्संग में वेदों, उपनिषदों, भगवत गीता और भागवत कथाओं के माध्यम से आध्यात्म को समझाने का प्रयास था।गंगा किनारे स्थित देवों की भूमि कही जानेवाली ऋषिकेश में सत्संग में शामिल होकर आध्यात्म साधना का प्रथम अनुभव अपने आप में अद्भुत था।
रोज़-मर्रा की ज़िंदगी से हटकर सात दिनों तक एक अनुशासित जीवन व्यतीत करना, नित्य प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठना, गंगा-किनारे पहुंचकर ध्यान करना, बहती गंगा की पृष्ठभूमि में वेद पाठशाला से आए छोटे-छोटे बच्चों के मुख से सहजता प्रवाहित वेदोच्चारण को सुनना अलौकिक था।
नित्य सायंकाल गंगा मैया की आरती में शामिल होना मन मस्तिष्क को सुकून देता था।मैंने पहले भी उपनिषद और वेदों की महिमा के बारे में सुना था लेकिन इस सत्संग में शामिल होने के बाद पहली बार मनुष्य के जीवन में हमारे वेदों, उपनिषदों दिव्य ग्रथों भगवत गीता, भागवत आदि का महत्व समझने में मदद मिली।
उक्त सत्संग में हमारे महान ऋषि रमण के शिष्य रमणचरणतीर्थ श्री वेंकटरमणजी को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह समझ आया कि एक गुरु कें मार्गदर्शन और आध्यात्म साधना के बिना संघर्षों भरे जीवन के भवसागर को पार करना कितना दुष्कर है ।
साधना के अपने प्रथम अनुभव के लिए मैं लताजी की हमेशा आभारी रहूंगी जो मेरी ननद से कहीं बढ़कर, एक अंतरंग मित्र हैं।
~भुवना “जया“~
जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है, “जया ” ने कभी ज़िंदगी से हारना नहीं सीखा। आशावादिता उनके जीवन का मूल मंत्र है। उन्हें अवकाश के क्षणों में संगीत सुनना पसंद है। असफलता ही सफलता की कुंजी है इस बात पर उनका गहरा विश्वास है।
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