आँखें..

आग का दरिया-
डूबो तो, सैलाब है आँखें ,
जताई तो,आईना है आँखें ,
तू कभी समझा नहीं, झूठ कहती नहीं आँखें|
दिल आबाद है तो, इक़रार है आँखें ,

रंजिश है तो,मसरुफ़ है आँखें,
खोखला तू खड़ा, लेकिन मगरूर है आँखें ,
हर धड़कन की वफ़ा है आँखें ,
रेत से फिसलते इश्क़ की,उम्मीद है आँखें ,
हर रुसवाई का,सवाल है आँखें ,

अंदर दफन राज़ का,पर्दा है आँखें ,
हर धोखे की, सज़ा है आँखें ,
क्यो आज सब जानकर, ख़फ़ा है आँखें ???

~साक्षी चंदनकर~

साक्षी चंदनकर एम.बी.बी.एस कि पढ़ाई कर रही हैं । लिखने का प्रयास भी बचपन से शुरू किया | अक्सर जो बात कह नहीं पाती उसे शब्दों में पिरोकर लिख देती हैं । हाईस्कूल के दौरान उन्होंने कविताओं से विराम लिया था | फिर एम.बी. बी.एस की शुरुआत में एक शाम अपने जीवन का अनुभव फिर एक पन्ने पर उतार दिया । छुप- छुपकर फिर उन्होंने लिखना शुरु किया | जब उनकी एक कविता की दोस्तों ने प्रशंसा की, उनमें आत्मविश्वास जागृत हुआ| फिर अपने लेखक बनने के ख़्वाब को चुना और अब वे अपने दोनो क़िरदार- लेखक हो या वैद्यकिये पढ़ाई, बहुत ख़ूब निभाती है। एक अनकही बातों का कारवाँ उनके blog- “अबोल “मे शामिल है ।

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