रात आएगी काली घनी,
आंसुओं से लदी भरी;
सब तारे गुम्म हो जायेंगे,
और चाँद दग़ा दे जाएगा;
तुम डर डर सोना चाहोगे,
पर ख्व़ाब डराते जायेंगे;
बस पूरब की ओर आँख रखना…
सुबह होगी-
यह ध्यान रखना…
अन्धकार रात नहीं-
प्रकृति की प्रवृत्ति है,
दोष क्या देना ?
रोष क्या लेना ?
जग काटे गुंजे कितने ही,
पतझड़ निर्मम हो कितना भी,
वसंत को रोक सका है कौन?
कोयल को टोक सका है कौन?
जो राख जमे अंतर्मन में,
उसे झाड़-झाड़ उड़ान भरना,
फीनिक्स हो तुम,
जद्दो जहद में यही मिज़ाज रखना|
सुबह होगी-
यह ध्यान रखना…
~समर~
समर भीड़ में उलझा एक चेहरा है |
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