बदलाव ही ठहराव है …

कैसेट के ज़माने का हूँ,
सी.डी को अपनाया है;
इतनी बदलती देखी दुनिया,
की अब हाथ में कुछ पेन ड्राइव सा आया है,
की उम्र हो चली अब लेकिन,
फिर यह “क्लाउड” का ज़माना नया आया है|

इतने ताले घर में नहीं,
जितने अपने फ़ोन पे लगाए हैं;
पहनने को कपड़े कम,
अब हर दिवाली फ़ोन के ही नए कवर आये हैं;
बचपन के दोस्त की बदलती शक्ल,
अब वाटसैप पे देखनी है पड़ती;
शाम की चाय पे बातें,
अब वीडियो कॉल पे है करनी पड़ती;
ज़रूरी मीटिंग पे आधे कपड़े ही सही है,
दीवारों के सिलन छुपा देने वाले,
अब बाज़ार में वॉलपेपर कई हैं |

सरकार की निंदा-
अब चाय टपरी पर ख़त्म हो चली,
अब सीधे पी.एम से टकराते हैं,
ज्यादा बुरा लगे तो,
उन्हें टैग कर के हैं गरियाते|

दिन तो वही सही थे ,
जब पापा फ़ोन करते और लैंडलाइन पे भाग थे जाते,
उनको जिनसे बात करनी होती-
उनका नाम हम पुरे घर में चिल्लाते!
जहाँ चाकलेट दस की थी बड़ी बात,
डाटा कागज़ हुआ करते थे,
और “क्लाउड” हम यादों को कहा करते थे …

~यतिन “शेफ़्ता”~

ज़हीन भी, और नटखट भी , यतिन “शेफ़्ता” ने अपने बारे में हमें कुछ यूँ बताया-

“मैं नए ज़माने में कुछ पुराना सा हूँ , 
कुछ बेढंगा कुछ आवारा सा हूँ ,
कि महफिलों में शराब की-
चाय की प्याली सा हूँ.
पुराने गानें आज भी ज्यादा भाते हैं ,
पॉप के ज़माने में नुसरत साब की क़व्वाली सा हूँ
इस दौड़ती हुई दुनिया में,
धीमा चलने वाला राही सा हूँ…”
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2 thoughts on “बदलाव ही ठहराव है …

    1. Thanks for reading the GoodWill Blog. Please keep reading and follow us for more posts.

      Regards,
      Team GoodWill

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