मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया,हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया…
साहिर लुधियानवी
इस गीत से हम सब वाक़िफ़ हैं। साहिर लुधियानवीजी के द्वारा लिखित यह गीत मेरे दिल के बहुत क़रीब है। इस गीत के हर शब्द से मैं ख़ुद को जुड़ा पाती हूँ। अब जब मैं ज़िंदगी के तीसरे पड़ाव, यानी बुढ़ापे की तरफ बढ़ रही हूं, तो सोचकर हैरानी होती है कि एक दौर था जब कुछ कड़वे अनुभवों के कारण मैं ज़िंदगी से पूरी तरह निराश हो गई थी | मुझे अपनी ज़िंदगी बेमक़सद और हताशापूर्ण लगने लगी थी।

फिर ज़िंदगी ने एक नया मोड़ लिया और मैं एक बार फिर जीने की चाह करने लगी। उम्र की परिपक्वता के साथ धीरे धीरे ज़िंदगी को एक नये नज़रिये से देखने लगी। ज़िंदगी के हर मोड़ पर नये नये अनुभवों की यादें समेटे आज मैं जिस मुकाम पर हूं उससे कुछ बातें जो मैं सीख और समझ पायी वह कुछ यूं हैं –
- वक्त से पहले और किस्मत से ज़्यादा कभी किसी को कुछ हासिल नहीं होता|
- कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|
- जो भी ज़िंदगी तुम्हें देती है उसे दिलों-जान से अपनाएं और कभी मन में कोई रंज न रखें|
- अपने आप पर और उपर वाले पर कभी विश्वास न खोएं|
- नकारात्मकता से दूर रहें और स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहें।
हम सब से परे जो अदृश्य शक्ति है उस पर भरोसा रखें। ज़िंदगी के अबतक के सफर में कई बार मैंने ख़ुद को ऐसे मोड़ पर पाया जब मुझे लगा कि मैं एक अंधेरी सुरंग में फंस गई हूं| उस अंधकार से निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता था| और फिर मुझे उसी अंधेरी सुरंग के मुहाने पर रोशनी की एक छोटी सी किरण नज़र आई जिसने मुझे सुरंग से अंततः बाहर निकलने में मदद की| और एक बार फिर मैं ज़िंदगी की अंधेरी राहों से निकलकर रौशन पथ पर विश्वास के साथ चल पड़ी।

तो दोस्तों जीवन की राहें कितनी ही कठिन और अनिश्चितता से भरी क्यों न हो कहीं न कहीं एक छोटी सी आशा की किरण आपकी राह में अवश्य मिलेगी, जो आपको अंधेरे से दूर रोशनी की ओर ले जाएगी | इस विश्वास के साथ इस ख़ूबसूरत गीत को गुनगुनाते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहिये…
~भुवना “जया“~
जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है, “जया ” ने कभी ज़िंदगी से हारना नहीं सीखा। आशावादिता उनके जीवन का मूल मंत्र है। उन्हें अवकाश के क्षणों में संगीत सुनना पसंद है। असफलता ही सफलता की कुंजी है इस बात पर उनका गहरा विश्वास है।
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