ज़िंदगी की राह पर चलता चल,
कभी थम तो कभी बढ़ता चल|
रास्ते –
कभी अलग, कभी समान;
कभी जोखिम भरे, कभी करे हैरान, ,
कभी दे ख़ुशी , कभी करे परेशान,
फिर भी ज़िंदगी की राह पर चलता चल,
कभी थम तो कभी बढ़ता चल।
मौके अनेक आएंगे,
कभी रास्ते सीधे,
तो कहीं यह मुड़ भी जाएंगे
मोड़-
कभी रास्ते दिखायेंगे,
कभी रास्तों से भटकायेंगे,
भूले भटके रास्तों का भी अलग है मज़ा,
ये भी कहीं ले कर ही जाएंगे,
नई मंजिल दिखायेंगे,
नया रास्ता सुझायेंगे,
बेफज़ूल, बेवजह ही सही,
पर हैं तो मोड़ रास्ते ही,
तू मोड़ को भी अपनाता चल,
ज़िंदगी की राह पर चलता चल,
कभी थम तो कभी बढ़ता चल|

हर मोड़ की है अपनी मुश्किलें,
हर जगह की अपनी परीक्षा,
हमें धैर्य रखना होगा,
कभी कहीं पर थमना होगा,
थमना भी तो रास्ते का ही हिस्सा है,
थमना साँस की याद दिलाएगा,
वक़्त की याद दिलाएगा,
खुद से परिचय कराएगा,
यादों में डुबाएगा|
पर फिर हमें चलना होगा,
चलते रहना होगा|
सब्र रखना मेरे दोस्त ,
जब वक़्त का पहिया घूमेगा,
रास्ते मंजिल बन जायेंगे,
और मंजिल नया रास्ता |
नये रास्तों, नयी मंजिलों की ओर,
उत्साह से हर कदम रखता चल|
ज़िंदगी की राह पर चलता चल,
कभी थम तो कभी बढ़ता चल|
~श्रुति रामकृष्णन~
श्रुति को लेखन की प्रेरणा रोज़मर्रा के जीवन में प्राप्त होती है। उनका विश्वास है कि अपने और लोगों के गहन अनुभवों के समाहित होने से ही शब्द जादू बिखेरने में सक्षम हो पाते हैं।