मग़रूर से मजबूर तक ,
आज़माइश से नूर तक,
चाँद के अमान तक,
पिघलते आसमान तक,
क़ैद से आबाद तक,
मुक़द्दर के आग़ाज़ तक,
रुह की आबरू तक,
इंतजार की सेज़ पर ,
अब खड़ा ये ऐतबार है!!
रस्म-ए-नुमाइश से,
फ़नाह हुए ख़त पर;
बेबस इन फ़ासलों से,
मोहब्बत की बिसात पर;
तसव्वुर की सैर से,
आशियाने की दौड़ तक;
रुहानी सी एक शाम से,
ग़ुज़र रहा हर दिन,
सजी एक दास्तान है….
~साक्षी चंदनकर~
साक्षी चंदनकर एम.बी.बी.एस कि पढ़ाई कर रही हैं । लिखने का प्रयास भी बचपन से शुरू किया | अक्सर जो बात कह नहीं पाती उसे शब्दों में पिरोकर लिख देती हैं । हाईस्कूल के दौरान उन्होंने कविताओं से विराम लिया था | फिर एम.बी. बी.एस की शुरुआत में एक शाम अपने जीवन का अनुभव फिर एक पन्ने पर उतार दिया । छुप- छुपकर फिर उन्होंने लिखना शुरु किया | जब उनकी एक कविता की दोस्तों ने प्रशंसा की, उनमें आत्मविश्वास जागृत हुआ| फिर अपने लेखक बनने के ख़्वाब को चुना और अब वे अपने दोनो क़िरदार- लेखक हो या वैद्यकिये पढ़ाई, बहुत ख़ूब निभाती है। एक अनकही बातों का कारवाँ उनके blog- “अबोल “मे शामिल है ।
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