उड़ खोल पंख
परवाज़ तो भर,
ज़मीं से रोष है तेरा,
आसमाँ से क्या गिला?
धूल का तिनका ज़र्रा भी,
उड़ने का माद्दा रखता है,
होना उसे ख़ाक है पर,
गिरने से ख़ाक वह डरता है!
सुन देख तुझे पुकारे नभ,
भय पार सजे हैं पर्वत सब,
जा चीर फ़लक,
दीदार तो कर,
उड़ खोल पंख
परवाज़ तो भर।
जो बहा वह दरिया हुआ,
सड़ गया पानी ठहरा हुआ,
देख समंदर आज सभी,
तुझे सुनाते राज़ कई,
सीपक, मोती, कौड़ी, शंख!
जा चीर लहर,
मगरों से लड़,
उड़ खोल पंख
परवाज़ तो भर।
तट का सम्मोहन-
बड़ा मनोरम,
पालना, झूला,
स्नेह प्रमोदन।
सच नहीं सफ़र किनारे का,
सच बना हुआ मंझधारे का|
जा धार से भिड़,
जा लड़ कट मर,
उड़ खोल पंख,
परवाज़ तो भर,
उड़ान का आग़ाज़ तो कर…
~तनय “समर”~
समर भीड़ में उलझा हुआ एक चेहरा है |
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Kaida bhai kaida
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Awesome !! Wow!!everytime I opened this i read it twice on the trot .. bahut badhiyan
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The writer is undoubtedly a genius 🙂👏 ! Bravo Tanay
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