हो सके तो लौट आना !
इतना न ख़ुद को Independent बनाना,
कि माँ बाप के बिना रहना अच्छा लगने लगे;
ऐसा जब लगने लगे,
घर लौट आना |
अब जब वे बुढ़ापे की देहलीज़ पर हैं,
उनके साथ रहना;
कुछ थोडा कम ही कमाना,
पर उनके पास रहना|
बचपन में जिस घर की दीवारों पर,
तुम अपना नाम लिखा करते थे,
अपने उस घर को वो-
कब का तुम्हारा मान चुके हैं;
जिन ईंटो का हिसाब,
अपने खून पसीने से चुकाया था,
उस हर ईंट को, कर तुम्हारे नाम चुके हैं;
कोई लालसा नहीं उन्हें,
अपनी हर सुबह तुम्हारे लिए,
कर वो शाम चुके हैं |
आधी ज़िंदगी तुम्हें बनाने में लगा दी,
बाक़ी ज़िंदगी तुम्हारे साथ,
वक़्त बिताने का इंतज़ार कर रहे हैं;
तो अब अपना फ़र्ज़ अदा करना,
मत तन्हा उनकी शाम करना,
उनके पास रहना,
हो सके तो लौट आना….
~यतिन “शेफ़्ता”~
ज़हीन भी, और नटखट भी , यतिन “शेफ़्ता” ने अपने बारे में हमें कुछ यूँ बताया- “मैं नए ज़माने में कुछ पुराना सा हूँ , कुछ बेढंगा कुछ आवारा सा हूँ , कि महफिलों में शराब की- चाय की प्याली सा हूँ. पुराने गानें आज भी ज्यादा भाते हैं , पॉप के ज़माने में नुसरत साब की क़व्वाली सा हूँ इस दौड़ती हुई दुनिया में, धीमा चलने वाला राही सा हूँ…”
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