“कभी कभी अपनी तुच्छता पर बहुत रोना आता है| एक नितांत शून्य-इससे अधिक कुछ भी तो नहीं है मुझ में| रिश्तें हैं, परिवार है, अच्छे दोस्त, अच्छी किताबें- यह सब तो है| और इनके होने का मुझे नाज़ भी है| लेकिन मुझ अकेले का क्या अस्तित्व है? इन सब चीज़ों के बिना क्या कोई भी ऐसी चीज़ है जो मैंने खुद अर्जित की हो? खुद खोजा या पाया हो? सकारात्मकता अपनी जगह है, लेकिन वास्तविकता की कुटिलता का क्या उपाए है? क्या मैं यूँ ही जीते जीते मर जाऊंगा? बिना दुनिया को कुछ दिए? बिना किसी के लिए कुछ भी किये?”
यही सब सोचते हुए मैं टहलने निकल जाता हूँ| चौक तक जाता हूँ और देखता हूँ एक पान की दुकान है| साहब, आव देखता हूँ न ताव, साम देखता हूँ न दाम, और दण्ड-भेद तो सोचता भी नहीं, फटाक से एक मीठा या सादा पान खा लेता हूँ| यक़ीन मानिए पहले पैराग्राफ में जो डिप्रेसिंग विचार मैंने व्यक्त किये हैं, उन सब से यकायक बरी हो जाता हूँ| पान मुँह में आते ही लू वसंत बन जाती है, ठण्ड रजाई और धुंआ सावन की बूँद लगने लगता है| जिस्म डाल – डाल तो रूह पात- पात | धर्म प्रचारकों ने हर वो चीज़ जिससे मनुष्य को सुकून मिलता है – “धर्म के विरुद्ध” श्रेणी में रख छोड़ा है| लेकिन मजाल है किसी पंडित की या इमाम की या फिर किसी भी प्रकांड वेद- पुराण, धर्मग्रन्थ की जो पान के खिलाफ चूँ -चपड़ करे? मेरा गूढ़ विशवास है की पान खाना ही मोक्ष है….ब्रह्म सत्य है| पान की महानता इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि पान की पीक और खून का रंग एक ही होता है!!
आम तौर पर मैं पिताजी को पापा बुलाता हूँ| बाप नहीं कहता…सिखाया ही नहीं गया| लेकिन आज डंके की चोट पर कहूंगा…कि पान खा के सड़कें अपने बाप की हो जाती हैं| साहब, हाथी की तरह चलिए और जहाँ मन करे थूक दीजिये|** हिम्मत है किसी में जो आपको हाथ भी लगाए? पान की पीक हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है| भारत सरकार का कोई भी दफ्तर भारत सरकार का नहीं जब तक वहां की दीवार पर पान का स्नान नहीं| पान!! कितना निर्मल और सुखद लगता है…मानो कमल के फूल पर दूध बरस रहा हो|

बच्चन जी उद्घोषित करते हैं -“राम नाम है सत्य न कहना …कहना सच्ची मधुशाला ||” निश्चित रूप से यह लिखते समय उनके मुँह में पान रहा होगा| और जैसे हर पंक्ति में मधुशाला के पर्याय बदल जाते हैं….इस पंक्ति में मधुशाला पान की दुकान रही होगी| पान की दुकान??..जी तो चाहता है लिखता जाऊं , पान की महिमा और उजागर करता जाऊं , लेकिन अब मुँह में पानी आ गया- पान खाने जाता हूँ|
आप चलेंगे? चलेंगी?
Trust me…a lot can happen over a Paan!!!
**कृपया पान खा कर यहाँ वहां न थूकें!!
मुस्कुराते रहें!!
~फ़न्ने खां द्विवेदी ~
फ़न्ने खां द्विवेदी को हर उस काम को अंजाम देने में आनंद आता है जिससे उनका दूर दूर तक कोई भला नहीं होने वाला | बात बेबात ख़ुद को बहुत बड़ा दार्शनिक समझते हैं और यदा कदा कुछ लिख कर सगे सम्बन्धियों और मित्रों को पढ़ाते रहते हैं| कारणवश हर कोई इनसे उचित दूरी बनाये रखने में विश्वास रखता है | पान, आम और आराम के प्रकांड शौक़ीन.....
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एक छोटी सी ख़ुशी बेहद खूबसूरती से बड़ा कर दिया…इन छोटी खुखुशियो में ही असल जीवन बसता हैं
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धन्यवाद सुमीत भाई! बेहद ख़ुशी हुई आपने पढ़ा तो …
Regards,
Team GoodWill
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