धूप सी काया मे बसी मोम सी माया ,
धूल के मुकंदर को हरा दे ये रुप तेरा,
आइना भी ना जाने इनके किरदार सभी,
एक उम्र बसा जिसके सारा ब्रम्हांड,
आदिशक्ति का मुक्कमल इनाम,
सहनशील और विकास का आँचल !
तेरे आँगन में झूमे सारा जीवन,
घर को बनाए मंदिर का दर्पण,
संजो के सब को लेती संभाल,
तेरी गोद में खेले निर्माण और विनाश,
हर नमन भी अधूरा बिन तेरी अरदास,
तेरे ही चरणों में अर्जित अपनी रेखा…
~साक्षी चंदनकर~
साक्षी चंदनकर एम.बी.बी.एस कि पढ़ाई कर रही हैं । लिखने का प्रयास भी बचपन से शुरू किया | अक्सर जो बात कह नहीं पाती उसे शब्दों में पिरोकर लिख देती हैं । हाईस्कूल के दौरान उन्होंने कविताओं से विराम लिया था | फिर एम.बी. बी.एस की शुरुआत में एक शाम अपने जीवन का अनुभव फिर एक पन्ने पर उतार दिया । छुप- छुपकर फिर उन्होंने लिखना शुरु किया | जब उनकी एक कविता की दोस्तों ने प्रशंसा की, उनमें आत्मविश्वास जागृत हुआ| फिर अपने लेखक बनने के ख़्वाब को चुना और अब वे अपने दोनो क़िरदार- लेखक हो या वैद्यकिये पढ़ाई, बहुत ख़ूब निभाती है। एक अनकही बातों का कारवाँ उनके blog- “अबोल “मे शामिल है ।
आवरण चित्र श्रेय: ज्योत्सना
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