कभी मैं जब बच्चा था…

कभी मैं जब बच्चा था,
मन मेरा सच्चा था!
काग़ज़ की नाव,
साहिल से जुड़ती थी;
कटी पतंग भी,
बहुत दूर तक उड़ती थी;
हसरतें थी माँ का आँचल,
और मंज़िल घर का कोना;
बंद पलकों से खुली आँखों तक
सब सपनों का अपना होना ….

क्रेडिट: pexels

होली के रंगो से रंगी दुनिया-
हो जैसे नानी की कहानी की मुनिया;
दीवाली के दियों सा चमकीला जहान था,
पहुँच में अपनी ये नीला आसमान था,
डग-मग, डग-मग मेरे कदम थे,
स्थिर पग, पर चंचल मन था…

शामों में सुबह ढूंढता-
अँधेरो से मैं डरता था,
कभी मैं जब बच्चा था,
मन मेरा सच्चा था |

आज…
फिर से सब कुछ जीने को,
कुछ पल ठहर जाने को,
उन सारी यादों को ,
समेटने को दिल चाहता है|

कोई तो दिला दो मुझे
वो रंगीली दुनिया, वो प्यारी मुनिया;
वो चमकीला जहान, वो नीला आसमान;
वो चंचल मन,वो डग मग कदम;
वो माँ का आँचल, वो घर का कोना;
वो काग़ज़ की नाव, वो कटी पतंग,
वो टूटते खिलोनें, वो रूठती बहना;
वो स्कूल का बस्ता, वो पुराना रास्ता,
वो छुट्‌टी की घंटी, वो पानी की टंकी,
वो यारों का साथ, वो स्याही सने हाथ,
वो सतरंगी सपने, वो सारे अपने,
वो आपस की लड़ाई, वो लाल मिठाई,
वो दशहरे का मेला,वो भाई संग झूला.
वो पहली साइकल, वो दढ़ियल अंकल,
वो बाबा के चश्में, वो झूठी कसमें ,
वो क्लासरूम की घड़ी,वो टीचर की छडी,
वो आँख मिचौली, वो हँसी-तिठोली,
वो उन्मुक्त उड़ान, वो हल्की थकान|

वो सबकुछ,
वो हर कुछ,
कोई तो दिला दो,
कोई तो..

~रजनीश रंजन~

रजनीश रंजन आई.टी क्षेत्र में कार्यरत हैं | जीवन की आपा धापी में जब वे कुछ ठहराव ढूंढते हैं, किताबों, कहानियों, कविताओं, कलम और अपनी जन्म-भूमि बेतिया को अपने मन के करीब पाते हैं | पढ़ाने और खाने के शौक़ीन, पुत्र, पिता, पति, भाई और सचिन तेंदुलकर के प्रगाढ़ प्रसंशक... 

23 thoughts on “कभी मैं जब बच्चा था…

    1. Thanks for the constant encouragement and being a pillar of strength for us.

      Regards,
      Team GoodWill

      Like

    1. अपने के बहुत बहुत आभार जे अपने पढ़लीये! धन्यवाद उमेशजी !

      Like

    1. धन्यवाद अनुपमा जी !!
      लिखती और मुस्कुराती रहिये !
      Team GoodWill.

      Like

Leave a comment