उलझना और उससे बाहर निकलना जीवन की निरंतरता है जो हमेशा रहेगी, पर एक ही उलझन मे निरंतर रहना जीवन में समरता की विफलता है, अतः व्यक्ति को अपनी समरता को विजय के लक्ष्य तक ले जाने के लिए सरसता या मुहिम की आवश्याकता होती है|
उलझने बहुत हैं|
हमेशा रहेंगी…
क्योंकि जीवन में समरूपता निषेध है !
इसलिए कि समरूपता त्वरण के विपरीत है |
बिना त्वरण की गतिशीलता नहीं है |
बिना गतिशीलता के विभिन्न्ता नहीं है|
बिना विभिन्न्ता जीवन-रस नहीं है |
बिना रस के उत्साह नहीं है |
बिना उत्साह, समरता नहीं है -असमरता, विवशता है |
विवशता, उदासीनता है|
उदासी, उत्कंठा है|
उत्कंठा, चिंता है|
चिंता, रोग है |
रोग, जीवन का लोप है
अतः खुद को एक उलझन से निकालना
और फिर आगे बढ़ना ही जीवनमूल है|
हर्ष-विषाद की यह दल-दल है,
भावों का इसमें अजीब सा छल है
जो इससे ऊपर हो जाता
उसका जीवन बड़ा सरल है |
~राजीव कुमार कर्ण ~
कल्पना असीम है; पर रहती करीब है, वास्तविकता दिखती है; पर होती अजीब है, जज़्बातों को अभिव्यक्ति; बनाती सजीव है, अंतरमन के शांत सरोवर में; जो खिल जाए वो राजीव है|
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आपने बहुत अच्छा लिखा है।🙂
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धन्यवाद
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सचमुच एक अद्भुत रचना जो जीवन का परिचय करवाती है।
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धन्यवाद Ashu
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