कारवाँ बनता गया…

2021.

समय कोविड का था | दूसरी लहर अपने साथ न जाने कितने ही परिजनों को स्मृति शेष करती जा रही थी| जो स्तम्भ बचपन से हमे थामे हुए थे वो एकाएक हिलने लगे थे | रोज़ एक डर | आज कौन ? अब कौन ? कहाँ से फ़ोन ? किसकी ख़बर?

ढहती मीनारों और दम तोडती उम्मीदों में एक अजीब सी पंक्ति सुनने को मिलती है :

साज़-ऐ-ग़म पर जो ख़ुशी के गीत गाता जाएगा…

पर क्या ये संभव था ? मुक्कद्दर का सिकंदर बनने की कोई ख़ास लालसा नहीं थी, लेकिन साज़ ऐ ग़म पर ख़ुशी के गीत गाने का साहस चाहता था | ढहती मीनारों के बीच भी, एक नयी ईमारत बनाना चाहता था जिसकी नींव ही हिम्मत हो | जिसमे संवेदना सबकी हो पर आलोचना किसी की नहीं | पर आता था केवल लिखना | वो भी ठीक से नहीं | वो भी अच्छा नहीं | बस इतना की मन को दिलासा दी जा सके कि हाँ कुछ तो लिख लिया है जो आधा अधूरा ही सही, पर पढ़ा जा सकता है |

सो टूटी-फूटी हिम्मत और बचे-खुचे ख़्वाबों से शुरुआत होती है The GoodWill Blog की | चलना था, लेकिन कहाँ और कितनी दूर इसकी कोई सुध नहीं थी |

मैं अकेला ही चला था जानिब-ऐ मंजिल,

लोग आते गए- कारवाँ बनता गया |

मजरूह सुल्तानपुरी

कारवाँ की शुरुआत होती है जब सरबजीत, भुवना “जया “, रजनीश “राही” ने स्वेच्छा से इस प्रयास को सराहा और अपने अथाह रचनात्मक समुद्र के कुछ मोती प्रकाशित करने की अनुमति दी | इनके आध्यात्म, अनुभव और परिपक्व्ता के बिना संभव नहीं होता आज ये सब लिख पाना| वहीँ अचानक से आगमन होता है यतिन “शेफ्ता” का जो अपने अनमने मगर बेबाक, अनोखे मगर संजीदा, ख्यालों से इस कोशिश को एक समकालीन दिशा दे देते हैं |

श्रुति रामकृष्णन के सजीव लगते शब्द और अश्वनी के विवेक-पूर्ण लेख इस कारवाँ को बढाते गए | विजय अपने सुरा-विसुध माधुर्य विचारों से सींचते रहे| संचित, उदित, दीपक, हरदम रहे किसी न किसी रूप में ये बताने के लिए कि उम्मीद और हिम्मत भरे कदम कभी अकेले नहीं चलते | मिल ही जाते हैं साए जो निभाते है साथ हर कदम पर |

आदित्य रंजन और शमिक बनर्जी की अद्वितीय लेखन शैली, शब्दों से परे एक ऐसे संसार की संरचना कर देती है जो जोडती है मनुष्य को उसके चेतन-अचेतन विचारों से | अहाना और कोनिका की उमंग, निश्चलता और नवीनता, लेला पेटर्सन का अदम्य साहस …मैं इन सब को शब्द मात्र में कैसे समेटूं ? पर शब्दों के सिवा कुछ है भी कहाँ मेरे पास ?

इन पन्नों में है साक्षी का संजोया हुआ नूर, अश्मिका की कभी न थकने वाली हिम्मत और यशोवर्धन का कभी न हार मानने वाला जज़्बा | यहाँ मिलती है सौरभ की दी हुई प्रेरणाएं, ज्योत्स्ना की बनाई हुई साकार सजीव चित्रित प्रतिमाएं (अब लेखन भी !!) और अनिशा के बचपन के उन मित्रों के संस्मरण, जो हैं साथ हमेशा, जैसे चाँद तारों का कभी कभी न दिखते हुए भी हरदम होना….

प्रतीक और निहारिका युवा होते हुए भी विचारों में वो प्रगाढ़ता ले आते हैं जो हैरान कर देती है | रिद्धिमा कितनी सादगी से लिख देती हैं वो सब, हमारी मनपसंद सिनेमा पर, जो हमेशा लिखना चाहता था मैं पर कभी हिम्मत की कमी रही, कभी शब्दों की | और रोहित जो स्वयं एक व्यस्त प्रकाशित लेखक होते हुए भी, समझते हैं हमारे प्रयासों को और समय निकाल के लिखते हैं वो सब जो युवाओं को ज़रूरी है पढना भावी जीवन को भव्य बनाने के लिए |

रानी लक्ष्मी बाई के बारे में कहा गया है उनसे बूढ़े भारत में क्रान्ति की एक नयी उर्जा का संचार हुआ था | ये संयोंग है कि जिन्होनें हमारे INSTAGRAM पेज के स्वरुप को विविध रंग, रील्स, संगीत से क्रान्तिमय कर दिया उनका नाम भी लक्ष्मी ही है | हम खुद अपने लिखे में कोई वो सब नहीं देख पाते जो वो देख लेती हैं और अपनी दक्ष कला से निहित संवेदनाओं को उभार कर ले आती हैं | मुझे नहीं समझ आता वो ये अलग परत देख पाने का दृष्टिकोण कैसे जारी रख पाती हैं अपनी हर रचना के साथ….

कितनी उथल पुथल हुई है गत दो सालों में | इन पन्नों में कुछ भी तो नहीं था | और जब कुछ नहीं था तब से विकास रहे हैं साथ..घास की शिखा की तरह जो रहती है हरी सदा | धन्यवाद विकास भाई | और धन्यवाद आप सबको जिन्होंने ज़रूरी समझा लिखना और लेखन की परतों को यथाशक्ति समृद्ध करना, उस वक़्त जब भावुकता शोर में अपना अस्तित्व खोती जा रही है | पर शोर कितना भी गहरा हो, एक व्यक्ति है जो आपके लिखे हुए को हरदम पढ़ेगा, चित्रों को सराहेगा और रील्स को समझेगा….

~समर ~

मार्गदर्शन श्रेय : श्री अनजान (रचियता : "साज़-ए -ग़म पर जो ख़ुशी के गीत गाता जायेगा")

संरक्षण आभार : सभी राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय पाठक-गण

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