मेरी मर्ज़ी, मेरा मन।

कल का इंतज़ार –
मैं क्यों करूँ?
जो हूँ आज हूँ,
मैं कल से सवाल क्योँ करूँ?

मुझे जैसा लगे, मैं वैसा कहूँ,
मैं किसी और के लिए,
ख़ुद से सौदेबाज़ी क्यों करूँ?

मेरी चाहत जो भी है –
मैं दिल में क्यों रखूँ?
मैं उसे जज़्बात कहूँ,
उसे तुम्हें कहूँ,
या उससे फ़रयाद करूँ..
मुझे जैसे लगे, मैं वैसे कहूँ।

मैं परिवर्तन से क्यों डरूँ?
मैं परिणाम के लिए क्यों लडूँ?
जो हूँ, आईने के समक्ष हूँ,
मैं अपनी ग़लती से पर्दा क्यों करूँ?

मैं थाम कृष्ण का हाथ लूँ,
ज़ुबाँ से बस राधा-राधा नाम लूँ,
मैं बाँध पायल नाचूं बाजार में,
ये स्त्री! ये पुरुष!
पोशाक से बंटवारा क्यों करूँ?

मैं शिव का भक्त!
गले में रुद्राक्ष सजाऊँ,
मैं माथे पे राख लगाऊँ,
मैं संपूर्ण इंसान न बन पाऊँ,
पर धर्म के रास्ते चलने में क्यों शर्माऊँ?
मुझे जैसा लगे, मैं वैसा कहूँ,
जो रास्ता मुझे सही लगे,
मैं उसी को अपनाऊँ…

लेखन और वाचन: श्री यतिन “शेफ्ता”

~यतिन “शेफ़्ता”~

ज़हीन भी, और नटखट भी , यतिन “शेफ़्ता” ने अपने बारे में हमें कुछ यूँ बताया-

“मैं नए ज़माने में कुछ पुराना सा हूँ ,
कुछ बेढंगा कुछ आवारा सा हूँ ,
कि महफिलों में शराब की-
चाय की प्याली सा हूँ.
पुराने गानें आज भी ज्यादा भाते हैं ,
पॉप के ज़माने में नुसरत साब की क़व्वाली सा हूँ
इस दौड़ती हुई दुनिया में,
धीमा चलने वाला राही सा हूँ…”

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