उलझनें -जीवन -समर

उलझना और उससे बाहर निकलना जीवन की निरंतरता है जो हमेशा रहेगी, पर एक ही उलझन मे निरंतर रहना जीवन में समरता की विफलता है, अतः व्यक्ति को अपनी समरता को विजय के लक्ष्य तक ले जाने के लिए सरसता या मुहिम की आवश्याकता होती है|

उलझने बहुत हैं|
हमेशा रहेंगी…
क्योंकि जीवन में समरूपता निषेध है !
इसलिए कि समरूपता त्वरण के विपरीत है |
बिना त्वरण की गतिशीलता नहीं है |
बिना गतिशीलता के विभिन्न्ता नहीं है|
बिना विभिन्न्ता जीवन-रस नहीं है |
बिना रस के उत्साह नहीं है |
बिना उत्साह, समरता नहीं है -असमरता, विवशता है |
विवशता, उदासीनता है|
उदासी, उत्कंठा है|
उत्कंठा, चिंता है|
चिंता, रोग है |
रोग, जीवन का लोप है
अतः खुद को एक उलझन से निकालना
और फिर आगे बढ़ना ही जीवनमूल है|

हर्ष-विषाद की यह दल-दल है,
भावों का इसमें अजीब सा छल है
जो इससे ऊपर हो जाता
उसका जीवन बड़ा सरल है |

~राजीव कुमार कर्ण ~

कल्पना असीम है; पर रहती करीब है, 
वास्तविकता दिखती है; पर होती अजीब है, 
जज़्बातों को अभिव्यक्ति; बनाती सजीव है,
अंतरमन के शांत सरोवर में; जो खिल जाए वो राजीव है|

अगर आपको उचित लगे तो इस रचना को लाइक और इसपर कमेन्ट करें | अपने मित्रों और परिवार के सदस्यों से साझा करें | The GoodWill Blog को follow करें ! मुस्कुराते रहें |

अगर आप भी लिखना चाहते हैं The GoodWill Blog पर तो हमें ईमेल करें : publish@thegoodwillblog.in / blogthegoodwill@gmail.com

हमसे फेसबुक इन्स्टाग्राम और ट्विटर पर जुडें :

https://www.facebook.com/thegoodwillblog : Facebook
https://www.instagram.com/blogthegoodwill/ : Instagram
https://twitter.com/GoodWillBlog : Twitter

4 thoughts on “उलझनें -जीवन -समर

Leave a comment