हर बार हार हार कर,
दिल-जां-जुनूं थाम कर,
पोंछ नीर आँख से,
तान तीर बाण से,
लक्ष्य नये सधुंगा,
मैं अभी और लड़ूंगा…
धूप थी, ढल गयी;
शाम यूँ बिख़र गयी,
यादों के जो मेले थे,
अब तारों से, अकेले से;
दस चाँद नये जड़ूंगा,
मैं अभी और लडूंगा…
हर पल बहती युद्ध की वेणी,
पग पग सजती बलि की बेदी,
है मोल ही क्या कमज़ोरी का ?
बेबस बेदीन हुज़ूरी का ?
हर तलवार से भिडूंगा,
मैं अभी और लड़ूंगा,…
~समर~
समर भीड़ में उलझा हुआ एक चेहरा है |
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