उस नदी को बनना है, उस सागर के समान,
टकराती है चट्टानों से, वो नन्ही सी नादान।
कुछ कहती, कुछ सुनती, करती अपना हाल बयान ,
कुछ दूर चलकर ही, पाती ख़ुद को गुमनाम।
चलती है रोज़, बनाती एक जहान,
कहती है खुद से, बनानी मुझे पहचान।
गिरना और उठना, लगता सब एक समान,
ख़ुद में ही सिमटने वाला, एक अनजाना तूफ़ान।
बहुत बड़ी है ये दुनिया, बहुत बड़ा है मान
सबको है चलना, सबको है बनना, पाना है सम्मान।
मैं एक नदी हूँ, अधूरे है मेरे अरमान. ..
मुस्कुराते हुए देखते हैं, सोचते हैं भगवान।
कहते हैं सखी तू क्यों खुद से अनजान?
तू ख़ुद में ही परिपूर्ण, तुझ में ही तेरा सम्मान।
तू ख़ुद में ही सम्पूर्ण, नहीं देना तुझे प्रमाण,
लड़ना तुझे चट्टानों से नहीं, है ख़ुद से ऐ अनजान।
तुझ में ही तेरा समुद्र, तुझ में ही तेरा आसमान
नन्हें नन्हें कदमों से,बना अपनी पहचान. ..
~ Sunlit Whispers ~
धूप की फुसफुसाहटों में बहते शब्द, जो नदी की तरह जीवन का हर मोड़ छूते हैं।
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