तुम हो मेरे अंतर्मन में|
आँख बंद पलकों के पीछे तुम हो,
मेरे हर स्मरण में,
रात की गहरी नींदो में तुम;
तुम हो मेरे हर स्वप्न में,
वेदना तुम, चेतना तुम,
तुम मेरी संवेदना में,
उल्हास तुम,
ये स्वाँस तुम, सत्य तुम,
विश्वास तुम,
जीवन की अंतिम आस तुम|
तुम हो हृदय की धड़कनों में
हो तुम मेरे क्षण क्षण में…
तुम हो मेरे अंतर्मन में
तुम हो हर सुगंध में आभास में,
प्रसंग में बहते जलतरंग में आनंद में,
उमंग में तुम
मेरे हर रंग में तुम
जन्मो जन्मो से संग में तुम
इस तन-मन-धन में तुम
तुम हो मेरे अंतर्मन में
तुम ही तो हो मेरे अंतर्मन में……
पृथ्वी जल आकाश में,
तुम हो मेरी जिज्ञास में..
सागर मंथन के अमृत में,
तुम हो मेरी हर प्यास में…
तुम हो अंतरबोध में,
तुम हो प्रकट आभास में..
राधा-रुक्मणी-मीरा में तुम,
तुम हो कृष्ण के रास में..
तुम सूर्य की हर किरण में,
तुम हो मेरे अंतर्मन में..
समय के हर पल में तुम,
मेरे कल आज और कल में तुम..
मेरे हर स्मृति पटल में तुम,
हर सवाल के हल में तुम..
तुम अनुपूरण तुम शक्ति हो,
तुम भक्ति हो आसक्ति हो..
अविरल सी अनुभूति हो तुम,
तुम हो मेरे इस जीवन में..
तुम ही तो हो मेरे अंतर्मन में…
~अतिथि श्रीवास्तव~
नमस्कार। मेरा नाम अतिथि श्रीवास्तव हैं।मैं कविताएं लिखती हूं। साथ ही आर्टिकल्स, ब्लॉग्स , भी लिखती हूं। मैं अभी ग्रेजुएशन कर रही हूं। मुझे किताबे पढ़ना काफी अच्छा लगता हैं। मुझे लिखना बहुत पसंद है ।धन्यवाद..
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