बातें कुछ अनकही सी!

कभी फ़ुर्सत मिले तो कुछ पल साथ बैठना मेरे,
कुछ सवाल-जवाब अधूरे रह गए हैं तेरे-मेरे |

कुछ बातें,कुछ मुलाक़ातें अधूरी हैं,
फ़ासले रह गए हैं कुछ जो मिटाने जरूरी है |

इंसान की तो फ़ितरत होती है बदलना,
पर तुम इस भीड में मत उलझना |

खैर! गिले -शिकवे पे अब क्या ही भड़कना,
चलो छोड़ो ये फालतू लड़ना-झगड़ना|

तुम आना वक्त लेकर पास मेरे,
मैंने सुनाये हैं किस्से चाँद को तेरे|

कुछ बातें और कुछ मुलाकातें बताई हैं ,
कुछ अधूरे ख़्वाब और शिकायतें बताई हैं|

तुम जब आओ तो फुर्सत से आना,
वो पुराने बीते सारे लम्हे लेके आना|

वो सारे पल और बातें याद करके आना,
सुनो! आते समय वक्त साथ लेकर आना |

सुना है वक़्त रुकता नहीं है,
एक बार आगे निकल जाए तो मुड़ता नहीं है |

कभी फ़ुर्सत मिले तो कुछ पल साथ बैठ जाना,
इस बार जब आओ तो ठहरकर जाना !!

~वैष्णवी~

नमस्ते! मैं वैष्णवी हूँ, एक कवयित्री जो समाज की गतिशीलता को कविताओं में पिरोने और पाठकों के लिए बेहतर समझ बनाने की कोशिश कर रही है। मेरा उद्देश्य पीढ़ियों को प्रेरित करना और  रहना आसान बनाना है। 

धन्यवाद..

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