रंग दिखेंगे…

होश में आ, सच से मिल कभी,
बिना चले मंजिल मिलेगी नहीँ |

जग के ताने,
रोने गाने के अफ़साने
चलते रहेंगे |
लोग मौसमी है यहाँ
बदलते रहेंगे |

सपनों पे बाज़ से पंख लगा,
बाज़ सी नज़र भी रख |
होता है सब मुमकिन, बात मान |
ज़िम्मेदारियाँ भी निभेगी,
सपने भी पूरे होंगे |

लोग तो बस कह सकते हैं-
कहते रहेंगे |
तू एक एक ईंट जोड़ –
रंग दे दीवार, ख़ून-ओ-पसीने से-
तेरी इमारत पर फिर लोगों को
रंग दिखेंगे ||

~यतिन “शेफ़्ता”~

ज़हीन भी, और नटखट भी , यतिन “शेफ़्ता” ने अपने बारे में हमें कुछ यूँ बताया-

“मैं नए ज़माने में कुछ पुराना सा हूँ ,
कुछ बेढंगा कुछ आवारा सा हूँ ,
कि महफिलों में शराब की-
चाय की प्याली सा हूँ.
पुराने गानें आज भी ज्यादा भाते हैं ,
पॉप के ज़माने में नुसरत साब की क़व्वाली सा हूँ
इस दौड़ती हुई दुनिया में,
धीमा चलने वाला राही सा हूँ…”

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