ये रात रात भर जाग कर,
ख़ुद से दर दर भाग कर
रोज़ रोज़ का जीना मरना
ख़्वाब से डर के, ख़्वाब से लड़ना,
पल पल कमती सांस का ढलना,
और बारहाँ वही एक ख़्याल-
यूँ होता तो क्या होता?
का कोई जवाब नहीं होता।
जीवन के दोराहे देख,
फैली लंबी राहे देख,
साथ निभाने को केवल रास्ता,
बिछड़ता जाता हर वास्ता,
और बारहाँ वही एक ख़्याल-
यूँ होता तो क्या होता?
का कोई जवाब नहीं होता।
सफ़र अभी चलने को बाक़ी है,
तेरा ख़ुद के संग होना ही काफी है,
तू ख़ुद धूप भी है, तू बादल भी,
लाली, कंगन, काजल भी,
तू ऐनक भी, तू लाठी भी,
बचपन मेले हाथी भी,
तू आँचल भी, तू कान्धा भी,
लट्टू, बल्ला मांझा भी,
तू चूल्हा भी, तू चिमटी भी,
गाड़ी, पटरी, गुमटी भी,
तू राखी भी, बैसाखी भी,
बारी, कौल, गाछी भी. ..
तू है सब कुछ जो बाहर है,
सब है तुझमें जो बाहर है,
सब तुझसे है,
सब तुझमें है
है जैसे बारहाँ वही एक ख़्याल-
यूँ होता तो क्या होता?
का कोई जवाब नहीं होता…
~समर~
समर भीड़ में उलझा हुआ एक चेहरा है |
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creativity at its best. Dil Choo liya sir aapne
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Thanks for reading Sir.
Regards,
Team GoodWill
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