“कहाँ से हो?”
“नहीं ध्यान, शहर होगा कोई, कोई गाँव है शायद। “
“यहाँ कैसे आये? “
“कोई आंधी आयी थी। सब उखाड़ के ले गयी। मुझे भी। “
“मन लग गया यहाँ?”
“पता नहीं । नहीं शायद।”
“वापस जाना है?”
“पता नहीं। नहीं शायद।”
“क्यों?”
“डर लगता है।”
“किस से?”
“खुद से।”
“अकेले और लगेगा।”
“नहीं चाहता कोई डरता हुआ देखे मुझे।”
“तो क्या यहीं रहना है?”
“क्या फर्क पड़ता है। मुझमें कांटे तो रहेंगे ही। चुभेंगे ही।”
“चलो न चलते हैं।”
“कहाँ?”
“कोई शहर शायद। कोई गाँव शायद। “
“कैसे?”
“एक आंधी आयेगी…. “
~समर~
समर भीड़ में उलझा हुआ एक चेहरा है |
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