अंतर्द्वंद्व

एक ओर है भावनाओं का भवसागर,
दूजी ओर तर्कों की उथल पुथल,
मन और मस्तिष्क का ये कैसा अंतर्द्वंद्व?

कुछ पाने की अभिलाषा, कुछ खोने की निराशा,
जीवन के अनकहे सवालों में उलझा ये मन,
उमड़ते सवालों का जवाब ढूंढता मस्तिष्क,
मन और मस्तिष्क का ये कैसा अंतर्द्वंद्व?

अंतर्द्वंद्व में बसी स्मृतियां उथल पुथल,
कभी हंसता कभी दुखी तो कभी आश्वस्त होता मन,
निज आकांक्षा को छोड़ कर्तव्यों को चुनता मस्तिष्क,
मन और मस्तिष्क का ये कैसा अंतर्द्वंद्व?

मस्तिष्क के तर्क वितर्क का सिलसिला अनंत,
मन और मस्तिष्क का ये है सतत अंतर्द्वंद्व…

~भुवना “जया“~

जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है, “जया ” ने कभी ज़िंदगी से हारना नहीं सीखा। आशावादिता उनके जीवन का मूल मंत्र है। उन्हें अवकाश के क्षणों में संगीत सुनना पसंद है। असफलता ही सफलता की कुंजी है इस बात पर उनका गहरा विश्वास है।

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