ख़्वाब को चुन,
फरामोश न बन,
निकलेगी धुन
तू साज़ तो बुन।
सदा रहा-
कोलाहल जग में,
बरसता रहा-
हलाहल जग में,
पनपता रहा-
जीवन फिर भी,
खिलते रहे-
गुलशन फिर भी,
बहार को सुन,
पतझड़ न जप,
ख़्वाब को चुन,
फरामोश न बन…
जो है बस में,
वो बस में करना,
जिसपे बस नहीं,
उसपे क्या लड़ना?
सुबह करती
मुक़्क़मल् रात को,
ज़िद्द करती
मुक़्क़मल उड़ान को,
ज़िद्द को चुन-
“समझदार” न बन..
ख़्वाब को चुन,
फरामोश न बन,
निकलेगी धुन
तू साज़ तो बुन।
~समर~
समर भीड़ में उलझा हुआ एक चेहरा है |
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