कहीं से …

दिन-
उदास कभी,
धुंधले लगते
ख्वाब सभी,
कहीं से,
एक तितली
फूलों पर
दिख जाती है…
पल में जीना
सिखाती है |

शाम-
हताश कभी,
बिछड़ें लगते
यार सभी,
कहीं से
मंदिर की घंटी
सुन जाती है…
बचपन की धुनें
लौट आती है |

रात-
वीरान कभी,
उजड़ी लगती
याद सभी,
कहीं से,
एक ख़्वाब,
सुला जाता है
सुबह उठने की
वजह बता जाता है|

मैं सोचता हूँ,
ये ” कहीं ” कहाँ है ?
जहां से आते है सब –
दिन-रात,
सुबह, शाम;
तितली, धुनें,
और ख़्वाब…

~समर~

समर भीड़ में उलझा हुआ एक चेहरा है |

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