नूर सँजोया है…

ये किस अनजान भीड़ का क़िस्सा है?
जिसका लापता हर हिस्सा है।
ऐसे टकराते हर मोड़ पर ,
गुमनाम राहों के गुमनाम मुसाफिर,
जो कशमकश की दौड़ में आजमाइश से भागे नहीं..

कांटों का सफर ही रही ज़िंदग़ी,
हंसते कम बिलखते ज्यादा हैं,
सारा वक़्त जिसे दिया, उसे ही हमसे बैर है,
धूल में ख़ाक हो जाना-
क्या इतना कच्चा इंसाफ है?
पर हारना फ़ितरत नहीं-
जोड़ कर पत्ते फ़लक से,
नूर सँजोया  है…

~साक्षी चंदनकर~

साक्षी चंदनकर एम.बी.बी.एस कि पढ़ाई कर रही हैं । लिखने का प्रयास भी बचपन से शुरू किया | अक्सर जो बात कह नहीं पाती उसे शब्दों में पिरोकर लिख देती हैं । हाईस्कूल के दौरान उन्होंने कविताओं से विराम लिया था | फिर एम.बी. बी.एस की शुरुआत में एक शाम अपने जीवन का अनुभव फिर एक पन्ने पर उतार दिया । छुप- छुपकर फिर उन्होंने लिखना शुरु किया | जब उनकी एक कविता की दोस्तों ने प्रशंसा की, उनमें आत्मविश्वास जागृत हुआ| फिर अपने लेखक बनने के ख़्वाब को चुना और अब वे अपने दोनो क़िरदार- लेखक हो या वैद्यकिये पढ़ाई, बहुत ख़ूब निभाती है। एक अनकही बातों का कारवाँ उनके blog- “अबोल “मे शामिल है ।

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