- ईमानदारी
थिएटर करने की वजह अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकती है| मुझे ऐसा लगता है कि पहली चीज़ जो यहाँ मिलती है वह है ईमानदारी! यह हमें थिएटर के समय एवं स्थान से ईमानदार होना सिखाती है| यह देखना दिलचस्प होता है कि जब पूरा ढाँचा ही नकली है, तब कैसे एक अभिनेता चरित्र की परिस्थितिओं में अपनी सच्ची प्रतिक्रिया देता है| शायद यही बात थिएटर को वास्तविकता से अधिक वास्तविक बनाती है|
मेरा मानना है कि ख़ुद को सच्चाई से व्यक्त कर के हमें पूर्ण हर्ष प्राप्त होता है |
- रिश्ते

प्रेम, सदभाव, दया – मनुष्य इन प्राकृतिक गुणों के साथ जन्म लेता है| पर अपने आस-पास की परिस्थितियों के अनुसार कई कारक जैसे परिवार, शिक्षा, उस क्षेत्र एवं देश की राजनीती, अपने परिवार एवं समाज से उसका नाता इत्यादि, से प्रभावित होकर वह बड़ा होता है| मुझे लगता है कि यह अनुकूलन अटल है और इस अनुभूति से गुज़रने के हम सभी के अपने-अपने तरीके हैं|
थिएटर हमें इंसान के मनोविज्ञान को समझने में मदद करता है और हम इंसान को सामाजिक रूढ़िबद्ध धारणाओं के आधार पर अस्वीकार करने की जगह उसे स्वीकार करना सीखते हैं| थिएटर हमें सिखाता है कि कैसे एक चरित्र की विशेषता से ख़ुद को जोड़ा जाए और पहली बार में किसी चरित्र के पसंद ना आने पर भी कैसे उसके अतीत को जानकर हम उसके प्रति संवेदनशील हो सकते हैं|
थिएटर सभी के लिए प्रेम एवं संवेदना का एक मार्ग हो सकता है| हम सभी इस विशुद्ध भावना और अनुभूति के साथ जन्मे हैं (वह पहली अनुभूति जो हम सभी को अपनी माँ से मिली जब हमने इस सुन्दर दुनिया में जन्म लिया)|
- स्वयं को जानें -स्वयं!

थिएटर हमें स्वयं को समझने के कई मौके देता है| जब हम किसी चरित्र को निभाने की तैयारी करते हैं तो इसी के साथ हमें हमारे अवचेतन की गहराइयों की इच्छाओं एवं अनुभूतियों को जानने एवं समझने के बहुत सारे अवसर प्राप्त होते हैं| कुछ लोगों के लिए यह थोड़ा मुश्किल हो सकता है जब वह अपनी पूरी ऊर्जा और अपने अंदर के बच्चों जैसी निष्पाप व निष्कपट भाव को उस समय एवं स्थान को पूरो तरह सौंप देते हैं| पर वक़्त के साथ कुछ परिवर्तन अवश्यम्भावी हैं|
हमारे दिमाग में अक़्सर जो कई सारी अनावश्यक बातें चलती हैं, वह सब रुकके जैसे एक जगह पर केंद्रित हो जाती हैं| यह क्षण हमारे सच्चे स्वयं को उजागर करने की ताकत रखता है| और यह हम सभी का इंतज़ार करती एक बहुत ही ख़ूबसूरत दुनिया है|
- समय यात्रा

थिएटर के माध्यम से हम अतीत एवं भविष्य के अनदेखे चरित्रों को भी मंच पर जीवित कर सकते हैं| समय के परे यात्रा करने का हमें एकमात्र अवसर यहीं मिलता है! यह कल्पना की दुनिया है जो हमें केवल किताबों, कल्पित-विज्ञान की फ़िल्मों, एवं सिद्धांतों में ही मिलती है| थिएटर में हम मानसिक रूप से अतीत में आ-जा सकते हैं जो कि आम तौर पर असम्भव है तथा हम विभिन्न उम्र के चरित्रों को भी निभा सकते हैं| उस समय की व्यवस्था बहुत अलग हो सकती है – घर, वेशभूषा, लोगों का मनोविज्ञान, परिवार तथा समाज के साथ रिश्ता, उस क्षेत्र की राजनीति, उस समाज की नैतिकता, रीति-रिवाज, त्योहार, त्वचा की बनावट, लोगों की बोली-भाषा, और भी कई सारे कारक| क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हम थिएटर के माध्यम से अपने समकालीन वास्तविक दुनिया में ही समय-यात्रा करके वह चीज़/चरित्र बन सकते हैं जो समकालीन समय में शायद सम्भव ना हो?
उसी प्रकार, इस माध्यम से भविष्य की परिस्थिति को भी हम सोच सकते हैं जहाँ मानव थोड़ा और कम ‘मानव’ होगा और रोबोट जैसा अधिक होगा, जिसके आस-पास हाई-टेक गैजेट्स होंगे, जहाँ लोग शायद रहस्य तो सुलझा सकते हैं, पर ख़ुशी से जीवन जीने की लड़ाई भी लड़ते हैं क्योंकि मशीन इंसानी अनुभूति से जन्मी खुशियां नहीं दे सकतीं|
अतः, एक थिएटर-कर्मी समानांतर रूप से कई दुनिया, समय, तथा क्षेत्र में भूमिका निभा सकता है और इसी प्रक्रिया में हम अपने आप को और और अच्छे से जान सकते हैं|
- अनुशासन, दृढ़ संकल्प और समर्पण

थिएटर की प्रक्रिया शारीरिक तथा भावनात्मक रूप से थकाने वाली हो सकती है| यहाँ ख़ुद को पूरी तरह से थिएटर के समय एवं स्थान को समर्पित करना होता है| कई बार ऐसा लग सकता है कि कुछ भावनाओं का सामना करने में हमें कठिनाई हो रही है, या हमें समझ नहीं आ रहा कि हमारे अंदर क्या हो रहा है, या फिर कभी ऐसे भी मौके आ सकते हैं कि हमें स्वयं ही इस बात पे आश्चर्य हो कि हम ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं| थिएटर के जगत को उससे जुड़े विभिन्न माध्यमों जैसे अभ्यास, गतिविधियां, आदि से और जाना जा सकता है| कोई भी माध्यम जिसमें आपको रूचि हो, थिएटर के विषय को और जानने में सहायता कर सकता है| थिएटर पर किताबें पढ़ने से एक अलग तरह का संतोष एवं आनन्द प्राप्त होता है|
और सबसे ज़रूरी बात, थिएटर हमें जीवन की एक महत्त्वपूर्ण सीख देता है-
“The Show Must Go On….”

~विकास गर्ग~
हिंदी अनुवाद श्रेय : शताब्दी मन्ना
विकास गर्ग थिएटर अभ्यासकर्मी हैं जिन्हें कला, संगीत, पढना, ड्रम बजाने और गाजर का हलवा खाने से विशेष लगाव है | इस लेख के चित्र उनके थिएटर ग्रुप के अभ्यास की कुछ झलकियाँ हैं | उनकी उपस्थिति सभी के लिए शांति, सरलता और हर्ष का कारण है | आप इन्हें संपर्क कर सकते हैं vikasakash@gmail.com.
अनुवाद आभार : शताब्दी मन्ना
शताब्दी मन्ना – दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी और तुलनात्मक भारतीय साहित्य विषयों में स्नातकोत्तर शिक्षा। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए), नई दिल्ली, में परियोजना सहायक के रूप में कार्यरत। कहानी, संगीत, सिनेमा, भोजन, और यात्रा आदि विषयों में रुचि। तीन कहानियाँ ‘द रेड कलर्ड ब्लिस’ नामक कहानी-संग्रह में प्रकाशित।
लेख का मूल रूप अंग्रेजी में पढने के लिए यहाँ क्लिक करें|
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